मूली की फसल कच्ची सब्जी के रूप में इस्तेमाल करने के लिए उगाई जाती है | इसकी खेती कंद सब्जी के रूप में की जाती है | मूली का सेवन अधिकतर कच्चे के रूप में करते है | कच्ची मूली का सेवन करने से पेट सम्बंधित समस्याओ से छुटकारा मिल जाता है | इसका इस्तेमाल मुख्य रूप से सलाद को बना कर किया जाता है | मूली की फसल कम समय और कम लागत में अधिक पैदावार देने के लिए तैयार हो जाती है | इसलिए यह किसानो के लिए अधिक फायदे वाली खेती है | इसकी फसल को एक ही मौसम में दो बार प्राप्त किया जा सकता है |
मूली की फसल बीज रोपाई के दो माह बाद पककर तैयार हो जाती है | किसान भाई मूली की फसल को आलू, सरसों, गन्ना, मेथी, जो और गेहूं की फसल के साथ भी आसानी से ऊगा सकते है | यदि आप भी मूली की खेती कर अच्छा लाभ कमाना चाहते है, तो इस पोस्ट में आपको मूली की खेती कैसे करें (Radish Farming in Hindi) तथा मूली की खेती से कमाई से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराई जा रही है |
मूली की खेती में बलुई दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है, इसके अलावा भूमि अच्छी जल-निकासी वाली होनी चाहिए | मूली की खेती में 6 से 7 के मध्य भूमि का P.H. मान होना चाहिए | ठंडी जलवायु मूली की फसल के लिए काफी उचित होती है | इसके पौधे सर्दियो में गिरने वाले पाले को भी आसानी से सहन कर लेते है, तथा अधिक गर्मियों के मौसम में इसके पौधे अच्छे से वृद्धि नहीं कर पाते है |
इसके बीजो को अंकुरण के लिए 20 डिग्री तापमान तथा पौधों के विकास के समय 10 से 15 डिग्री के तापमान आवश्यकता होती है | मूली के पौधे न्यूनतम 4 डिग्री और अधिकतम 25 डिग्री तापमान को ही सहन कर सकते है | इससे अधिक तापमान होने पर फलो की गुणवत्ता में कमी आ जाती है |
मूली की कई देशी और विदेशी उन्नत किस्मे बाज़ार में मौजूद है, जिन्हे कम समय में अधिक पैदावार देने के लिए उगाया जाता है |
जापानी सफ़ेद
इस क़िस्म के पौधों को तैयार होने में 50 से 60 दिन का समय लगता है | इसके पौधे एक फ़ीट तक लम्बे होते है | यह स्वाद में कम तीखी होती है | इस क़िस्म के पौधे प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 250 से 300 क्विंटल की पैदावार देते है |
रेपिड रेड व्हाइट टिप्ड
मूली की इस क़िस्म के पौधों को तैयार होने में 25 से 30 दिन का समय लग जाता है, यह अधिक तेजी से पैदावार देने वाली क़िस्म है | जिसमे निकलने वाले फलो का रंग सफ़ेद और लाला होता है | रेपिड रेड व्हाइट टिप्ड क़िस्म के पौधे एक ही मौसम में कई बार पैदावार देते है |
हिसार न. 1
मूली की इस क़िस्म के पौधों को भारत के उत्तरी मैदानी राज्यों में उगाने के लिए तैयार किया गया है | इसमें निकलने वाले पौधों की जड़े सीधी और लम्बी पाई जाती है, जिसका बाहरी छिलका चिकना और सफ़ेद होता है | इस क़िस्म की मूली के स्वाद में मीठापन पाया जाता है | इसके पौधे रोपाई के 50 दिन बाद पैदावार देने के लिए तैयार हो जाते है, जिसका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 250 क्विंटल तक होता है |
इसके अलावा भी मूली की कई उन्नत किस्मों को अधिक पैदावार देने के लिए तैयार किया है, जो इस प्रकार है- पूसा हिमानी, पूसा चेतकी, पूसा देशी, पूसा रेशमी, पूसा चेतकी, पंजाब पसंद, पंजाब अगेती, व्हाईट आइसीकिल, व्हाईट लौंग, सकुरा जमा, के एन- 1, जौनपुरी मूली, फ्रेंच ब्रेकफास्ट और स्कारलेट ग्लोब आदि |
मूली की खेती में बीजो की रोपाई से पहले खेत को तैयार कर लेना चाहिए | इसके लिए सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हेलो से खेत गहरी जुताई कर देनी चाहिए, इससे पुरानी फसल के अवशेष पूरी तरह से नष्ट हो जाते है | इसके बाद खेत में प्राकृतिक खाद के तौर पर 15 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर के हिसाब से देना होता है | खाद डालने के बाद कल्टीवेटर के माध्यम से दो से तीन तिरछी जुताई कर मिट्टी में खाद को अच्छी तरह से मिला दिया जाता है | इसके बाद खेत में पानी लगा कर पलेव कर दे | इसके बाद खेत को कुछ समय के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दे जब खेत की मिट्टी ऊपर से सूखी दिखाई देने लगे तब मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए रोटावेटर से खेत में जुताई करवा दे |
इसके बाद खेत में पाटा लगाकर खेत को समतल कर दिया जाता है, जिससे खेत में जलभराव जैसी समस्या नहीं होती है | इसके बीजो की रोपाई मेड़ पर की जाती है, इसलिए खेत के समतल हो जाने के बाद एक से डेढ़ फ़ीट की दूरी रखते हुए मेड़ो को तैयार कर लिया जाता है | मूली के खेत में रासायनिक खाद को देने के लिए खेत की आखरी जुताई के बाद उसमे 50 KG सुपर फास्फेट, 100 KG पोटाश और 100 KG नाइट्रोजन की मात्रा प्रति हेक्टेयर के हिसाब से दे | इसके अतिरिक्त पौधों की जड़ो को बीज रोपाई के एक महीने बाद 20 से 25 KG यूरिया की मात्रा देनी चाहिए |
मूली के बीजो की रोपाई समतल और मेड़ दोनों प्रकार की भूमि में कर सकते है | समतल भूमि में रोपाई करने के लिए ड्रिल विधि का इस्तेमाल किया जाता है, तथा बीजो की रोपाई के समय प्रत्येक बीज के मध्य में 5 CM की दूरी रखी जाती है | इसके अतिरिक्त यदि मूली के बीजो की रोपाई मेड़ पर हाथ द्वारा की जाती है, तो प्रत्येक बीज के मध्य 5 CM की दूरी अवश्य रखे | इसके अलावा कुछ किसान भाई बीजो की रोपाई छिड़काव विधि द्वारा भी करते है |
छिड़काव विधि में मूली के बीजो को समतल खेत में छिड़क दिया जाता है, जिसके बाद खेत में कल्टीवेटर लगाकर पीछे हल्का पाटा बांधकर दो से तीन हल्की जुताई की जाती है | इससे बीज 3 से 5 CM की गहराई में दब जाता है | सामान्य तौर पर इसकी खेती को पूरे वर्ष किया जा सकता है, किन्तु सर्दियों के मौसम में इसकी खेती करने से अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते है |
मूली के बीजो की रोपाई को नम भूमि में किया जाता है | इसलिए पौध रोपाई के तुरंत बाद इसकी पहली सिंचाई कर दी जाती है | इसके पौधों को सामान्य सिंचाई की आवश्यकता होती है | यदि इसके बीजो की रोपाई सूखी भूमि में की गई है, तो उस दौरान इसके बीजो को अंकुरित होने तक हल्की सिंचाई की जरूरत होती है | मूली के पौधों की सिंचाई गर्मियों के मौसम में दो से तीन बार की जाती है, वही बारिश के मौसम में जरूरत पड़ने पर ही सिंचाई करनी चाहिए |
मूली के खेत में खरपतवार नियंत्रण के लिए रासायनिक और प्राकृतिक दोनों की विधियो का इस्तेमाल किया जाता है | मूली के पौधों में प्राकृतिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई- गुड़ाई की जाती है, इसके पौधों को केवल दो गुड़ाई की ही जरूरत होती है, जिसमे पहली गुड़ाई को 20 दिन बाद किया जाता है, तथा दूसरी गुड़ाई 15 दिन के बाद किया जाता है | इसके अलावा यदि आप रासायनिक विधि से खरपतवार पर नियंत्रण पाना चाहते है, तो उसके लिए आपको पेन्डीमिथालिन की उचित मात्रा का छिड़काव खेत में बीज रोपाई के बाद करनी होती है |
माहु रोग
इस क़िस्म का रोग कीट के रूप में समूह बनाकर पौधों की पत्तियों पर आक्रमण करता है | इसके कीट आकार में अधिक छोटे होते है, जो पत्तियों का रस चूस कर उन्हें पीला कर देते है | इस क़िस्म के रोग का प्रभाव अक्सर जलवायु परिवर्तन के दौरान देखने को मिलता है | मैलाथियान की उचित मात्रा का छिड़काव पौधों पर कर इस रोग की रोकथाम की जा सकती है |
बालदार सुंडी
यह बालदार सुंडी रोग पौधों पर किसी भी अवस्था में लग सकता है | इस क़िस्म के रोग का कीट पौधों की पत्तियों को खाकर उन्हें छलनी कर देता है | जिससे पौधे अपना भोजन नहीं ग्रहण कर पाते है, और उनका विकास पूरी तरह से रुक जाता है | क्विनालफॉस या सर्फ की उचित मात्रा का छिड़काव करने से इस रोग की रोकथाम की जा सकती है |
झुलसा रोग
इस क़िस्म का रोग पौधों पर जनवरी और मार्च के महीने में आक्रमण करता है | झुलसा रोग से प्रभावित होने पर पौधों की पत्तियों पर काले रंग के धब्बे दिखाई देने लगते है | रोग बढ़ने की स्थिति में यह पूरी पत्ती पर फ़ैल जाता है | मैन्कोजेब या कैप्टन दवा की उचित मात्रा का घोल बनाकर छिड़काव करने से इस रोग की रोकथाम की जा सकती है |
काली भुंडी का रोग
यह काली भुंडी रोग पौधों की पत्तियों पर कीट के रूप में आक्रमण करते है | यह कीट रोग पौधों की पत्तियों को खाकर उसे पूरी तरह से नष्ट कर देता है | जिससे पौधा भोजन नहीं ग्रहण कर पाता है, और कुछ ही समय सूख कर नष्ट हो जाता है | इस रोग से पौधों को बचाने के लिए 10 से 12 दिन के अंतराल में मैलाथियान की उचित मात्रा का छिड़काव पौधों पर करे |
मूली के पौधे बीज रोपाई के दो महीने बाद उत्पादन देने के लिए तैयार हो जाते है | इसकी छोटी जड़ो की खुदाई एक महीने में भी की जा सकती है | इस दौरान मूली के आकार को देखते हुए इसकी खुदाई कर सकते है | मूली की खुदाई के बाद उन्हें अच्छे से साफ कर बाज़ार में बेचने के लिए भेज देना चाहिए |
मूली के एक हेक्टेयर के खेत में तक़रीबन 250 क्विंटल की पैदावार प्राप्त की जा सकती है | मूली का बाज़ारी भाव गुणवत्ता के हिसाब से 3 से 4 रूपए तक होता है,जिससे किसान भाई इसकी एक बार की फसल से तक़रीबन सवा लाख की कमाई कर अच्छा लाभ कमा सकते है |